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Friday, 19 May 2017

मातृत्व






 अँधेरी रात में एक रौशनी सी जगमगाई..
छम छम करती एक नन्ही आवाज़ ई..
“क्या कुसूर था माँ मेरा..
जो न तूने अपनाई’
क्या कुसूर था मेरे बचपन का’
जो तूने है ठुकराई |”
सुन कर ये आवाज़ माँ चौकी,
आँखों में आंसू आयी,
शब्दों के फेरे में खुद को,
थी वो खड़ी हुई पायी|
“चुप न रह तू बोल न माँ,
क्या बेटी होना पाप है?
क्या जन्मदाता के श्रेणी में,
खुद को लाना पाप है?
क्या जिसके वेग में आकर,
तूने मुझे अपनाया नहीं,
उसे भी अपने जन्म होने पर,
शोक हुआ होगा कहीं?”
बहती आंसू की धरा को
रोक न पाई माँ युही,
अपने अंश के दूर होने का,
हुआ उसे भी शोक अभी |
“क्या तेरे जन्म पर भी माँ
मनाया गया था मातम?
क्या उनलोगों के जन्म का
साधन नहीं होगा मात्रम?
क्या मेरे दुनिया में आने से,
तेरा मान घट जायेगा?
मेरे न रहने पर तेरा मातृत्व
बदल जायेगा?
क्या तेरा अंश नहीं मैं,
क्या नहीं मैं तेरा प्यार?
क्या नहीं तेरे आँखों का
तारा हूँ मै माँ?”
आँखों के धारा को,
रोक न पायीं अब वो माँ,
जिस अंश को अलग किया था
खोकर पछता रही थी अपार |
अचानक ही आँखें खुली,
टूट गयी बिजली की जाल,
कोख को उसने छुआ तो,
मातृत्व हुई हर्षहार|
“तू भी मेरा अंश है बिटिया,
तू भी तो हैं प्यार का भार,
तू भी तो मेरे जीवन का,
हैं परिचय का आधार |
मातृत्व की इस लड़ाई,
में न होगा तेरा संघार,
तू भी खिलखिलाती आएगी,
जगमगाने मेरा संसार|”

By Vanshika ( स्नेहा )
India



Thursday, 18 May 2017

ममता




 
उसके बूड़े कदमो को, राह में तूने छोर दिया,
उसके आँखों के आंसू से, युही मुहँ फेर लिया |
उसके संघर्षो को तूने, ठुकराकर बर्बाद किया, |
उस ममता की छाया से तूने, युही नाता तोड़ दिया |
तेरे सिसकी भर ले लेने से,
जिसका दिल था काँप उठता ,
तेरे आँखों के आंसू को, जिसने अमृत सा था पान किया,
तेरे पालन पोषण पर जिसने,
अपना सर्वस्व डाल दिया,
तेरे ख्वाइशो का जिसने सर्व प्रथम ध्यान किया |
तेरे कामयाबी पर जिसने,
गर्व किया, मान किया,
उस ममता की छाया से तूने, युही नाता तोड़ दिया
हर दुआ में जिसके ,
रहता था तू भरा,
हर घड़ी जिसने था तेरा ही ध्यान करा,
हर पल अपने जीवन का जिसने,
तुझे सवारते बीता दिया ,
उस ममता की छाया से तूने, युही नाता तोड़ दिया |
आज तुझे याद आती है,
उसके ममता का आँचल,
आज तेरे आंसू की हर एक,
बूँद पुकारती उसे अचल,
आज तेरे मन की व्यथा,
चाहती है उसे बगल,
जब तेरे भी अंश ने तुझको,
उसी राह पर डाल दिया,
याद कर मुर्ख जब तूने था,
उस ममता की छाया से नाता तोड़ दिया |

By Sneha Pandey